अन्तरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस 2023 : हमारी भाषा, हमारी विरासत’ प्रदर्शनी
अन्तरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस (International Archives Day) प्रतिवर्ष 9 जून को मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य अभिलेखों के संरक्षण और प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
मानव सभ्यता के विकास के साथ हर इंसान के जीवन में दस्तावेज यानी अभिलेख का महत्व बढ़ गया है। इन अभिलेखों में आपका पहचान-पत्र, राशन कार्ड, बैंक पासबुक, मार्कशीट और कई सर्टिफिकेट शामिल हो सकते हैं। कई बार ये दस्तावेज हमारे साथ हमारे परिवार, समाज या राष्ट्र के लिए भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। इस तरह हर आदमी अपने दैनिक जीवन में अभिलेखों को सहेजता और संवारता है।
‘हमारी भाषा, हमारी विरासत’ प्रदर्शनी का उद्घाटन
भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार 9 जून, 2023 को अन्तरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस मना रहा है। इस अवसर पर आजादी का अमृत महोत्सव (एकेएएम) के तहत “हमारी भाषा, हमारी विरासत” नामक एक प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है। संस्कृति राज्य मंत्री सुश्री मीनाक्षी लेखी ने इस प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। ‘हमारी भाषा, हमारी विरासत’ प्रदर्शनी आम जनता के लिए 08 जुलाई, 2023 तक शनिवार, रविवार और राष्ट्रीय अवकाश सहित प्रत्येक दिन सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम 5:00 बजे तक खुली रहेगी।
आइए जानते हैं इस प्रदर्शनी में क्या प्रदर्शित किया जाएगा –
- इस प्रदर्शनी में अभिलेखीय भंडार के इतिहास से निकाली गई मूल पांडुलिपियों (जैसे भोज वृक्ष-छाल वाली गिलगित पांडुलिपियां, तत्त्वार्थ सूत्र, रामायण और श्रीमद भगवद् गीता व अन्य) को प्रदर्शित किया जाएगा।
- सरकार की आधिकारिक फाइलें, औपनिवेशिक शासन के तहत प्रतिबंधित साहित्य, प्रतिष्ठित व्यक्तियों की निजी पांडुलिपियां और भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार पुस्तकालय में रखी दुर्लभ पुस्तकों के समृद्ध संग्रह से भी चुनी हुई कृतियों का भी प्रदर्शन किया जाएगा।
- इस प्रदर्शनी में दुनिया की सबसे प्राचीन पांडुलिपियों में से एक – गिलगित पांडुलिपियां भी शामिल हैं, जो भारत में सबसे पुराना संरक्षित पांडुलिपि संग्रह है।
- इस प्रदर्शनी में शामिल भोज वृक्ष की छाल के बने पृष्ठों में प्रामाणिक (पवित्र) और गैर-प्रामाणिक दोनों तरह के बौद्ध रचना कार्य हैं। ये रचना कार्य जो संस्कृत, चीनी, कोरियाई, जापानी, मंगोलियाई, माचू तथा तिब्बती धार्मिक-दार्शनिक साहित्य के विकास पर प्रकाश डालते हैं।
दस्तावेजों का डिज़िटाइज़ेशन
इस डिजिटल युग में अभिलेखों के नष्ट होने का खतरा कम हो गया। दस्तावेजों का डिज़िटाइज़ेशन करके उन्हें अब कहीं भी और किसी भी वक्त पढ़ा जा सकता है।
भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग ने सदियों पुराने अभिलेखों को संरक्षित करने की योजना तैयार की है। अब हिमाचल के राजाओं की रियासत और सियासत से जुड़े दुर्लभ अभिलेख को बिना नुकसान पहुंचाए एक क्लिक से पढ़ा जा सकता है। अभिलेखों के संरक्षण की आधुनिक तकनीक न सिर्फ दस्तावेजों के संरक्षण के लिए उपयोगी हुई है बल्कि इससे इन दस्तावेजों का प्रचार-प्रसार भी बढ़ा है।
देश में प्राचीन काल के कई दस्तावेज मौजूद है, जिनकी हालत खराब हो चुकी है। ऐसे दस्तावेजों के लिए डिजिटाइजेशन बेहद महत्त्वपूर्ण है। इससे शोधकर्ताओं को काफी मदद मिलेगी।
अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस का इतिहास
अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस या रिकॉर्ड स्टोर दिवस को मनाने की शुरुआत वर्ष 2007 में हुई थी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य अभिलेखों के संरक्षण और प्रबंधन को बढ़ावा देना है। यह आम नागरिक को भी अपने दस्तावेजों को संरक्षित रखने के लिए जागरूक करता है।
बिहार अभिलेख भवन के बारे में
भारत के साथ विश्व के इतिहास के महत्त्वपूर्ण दस्तावेज बिहार अभिलेख भवन में सुरक्षित रखे गए हैं। बिहार के बेली रोड पर लगभग 2.3 एकड़ में बने भवन का उद्घाटन 23 अक्टूबर, 1987 को तत्कालीन उप-राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने किया था।
इस अभिलेख भवन में मुग़ल काल से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन और आजाद भारत की कहानी बतातीं तमाम तस्वीरें और पाठ्यसामग्री शामिल है। इस भवन में जमींदारी प्रथा के दस्तावेज, टोडरमल की डायरी, बापू के बिहार आगमन से जुड़े कई दुर्लभ दस्तावेज मौजूद है। यह अभिलेख भवन में ऐतिहासिक और प्रशासनिक महत्व की पुस्तकों का विशाल संग्रह देश-विदेश के शोधार्थियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
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