भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन दक्षिण-दक्षिण सहयोग का एक प्रमुख स्तंभ बन चुका है, जो यह दर्शाता है कि भारत अफ्रीका के साथ राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को गहरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
दोनों ही क्षेत्र—भारत और अफ्रीका—युवा आबादी, प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों और उपनिवेशवाद के खिलाफ साझा संघर्ष के कारण स्वाभाविक साझेदार हैं।
यह शिखर सम्मेलन द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संवाद को गहरा करने का एक संरचित मंच है। यह केवल व्यापार, सुरक्षा और विकास सहयोग को आगे नहीं बढ़ाता बल्कि भारत को अफ्रीका की विकास यात्रा में योगदान देने वाली एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करता है।
भारत-अफ्रीका संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत और अफ्रीका का जुड़ाव सदियों पुराना है, जब भारतीय महासागर के रास्ते प्राचीन व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान होते थे। स्वतंत्रता के बाद, भारत ने अफ्रीकी देशों के औपनिवेशिक विरोधी आंदोलनों का समर्थन किया और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के तहत उनके साथ खड़ा रहा।
यह ऐतिहासिक एकजुटता आधुनिक सहयोग की नींव बनी। पिछले दशकों में भारत ने अफ्रीकी देशों को क्षमता निर्माण, शैक्षणिक छात्रवृत्तियाँ, स्वास्थ्य सेवाएँ और विकास सहायता प्रदान की है।
भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन का महत्व
हालाँकि भारत ने अफ्रीकी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध बनाए रखे थे, लेकिन 21वीं सदी में एक संस्थागत संवाद मंच की आवश्यकता महसूस हुई। इसी क्रम में 2008 में भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (IAFS) की शुरुआत हुई।
IAFS के माध्यम से नियमित संवाद, नीतिगत समन्वय और संयुक्त परियोजनाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित हुआ, जिसने आपसी विश्वास को बढ़ाया और सहयोग को व्यापार से आगे बढ़ाकर प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और सुरक्षा तक विस्तारित किया।
भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन का विकास
पहला भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (2008)
नई दिल्ली में आयोजित, इसने ऐतिहासिक शुरुआत की। नेताओं ने विकास सहयोग, कृषि, ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार संवर्धन पर चर्चा की।
दूसरा भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (2011)
इथियोपिया की राजधानी अदीस अबाबा में आयोजित इस सम्मेलन ने पूर्व प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ाया। इसमें क्षमता निर्माण, पैन-अफ्रीकी संस्थानों और क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं पर जोर दिया गया।
तीसरा भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (2015)
नई दिल्ली में आयोजित यह अब तक का सबसे बड़ा सम्मेलन था, जिसमें सभी 54 अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें आतंकवाद-रोधी सहयोग, समुद्री सुरक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग पर विशेष ध्यान दिया गया।
चौथा भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन (हालिया विकास)
ताज़ा शिखर सम्मेलन में डिजिटल साझेदारी, हरित ऊर्जा, जलवायु सहनशीलता और समावेशी विकास पर बल दिया गया। इसने भारत की भूमिका को एक विश्वसनीय विकास भागीदार के रूप में दोहराया।
भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के उद्देश्य
भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन ने कई बहुआयामी लक्ष्य तय किए हैं:
राजनीतिक सहयोग
उच्च-स्तरीय यात्राओं, कूटनीतिक संवादों और संयुक्त राष्ट्र, WTO और ब्रिक्स (BRICS) जैसे बहुपक्षीय मंचों में सहयोग के माध्यम से संबंध मजबूत करना।
आर्थिक विकास और व्यापार विस्तार
द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना, निर्माण और सेवाओं में निवेश को प्रोत्साहित करना और व्यापार असंतुलन को कम करना।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और डिजिटल कनेक्टिविटी
डिजिटल शिक्षा, फिनटेक और ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म तक पहुँच का विस्तार करना, जैसे कि पैन-अफ्रीकी ई-नेटवर्क।
सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी पहल
आतंकवाद, समुद्री डकैती और साइबर खतरों से निपटने के लिए सहयोग करना, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में स्थिरता बनी रहे।
जलवायु परिवर्तन और सतत विकास
अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहल के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा, जलवायु सहनशीलता और सतत कृषि को बढ़ावा देना।
भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धियाँ
- व्यापार और निवेश समझौते: भारत अफ्रीका का एक शीर्ष व्यापारिक साझेदार बन गया है। हाल के वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार 90 अरब डॉलर से अधिक हो गया है।
- शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास: हज़ारों अफ्रीकी छात्रों और युवाओं को छात्रवृत्ति, प्रशिक्षण और टेलीमेडिसिन सेवाएँ उपलब्ध कराई गईं।
- इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी: भारत ने सड़क, रेलवे, पावर प्रोजेक्ट्स और IT हब के निर्माण में योगदान दिया।
- ऊर्जा और नवीकरणीय ऊर्जा: भारत और अफ्रीका ने मिलकर स्वच्छ ऊर्जा और विशेष रूप से सौर ऊर्जा सहयोग पर काम किया।
यूपीएससी के लिए भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की प्रासंगिकता
- पहला शिखर सम्मेलन: 2008, नई दिल्ली
- सभी 54 अफ्रीकी देशों की भागीदारी: 2015 शिखर सम्मेलन
- अफ्रीका: भारत की ऊर्जा सुरक्षा और समुद्री रणनीति का केंद्र
- भारत: अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार
संभावित UPSC प्रश्न:
- भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन दक्षिण-दक्षिण सहयोग को कैसे बढ़ावा देता है?
- चीन की बढ़ती उपस्थिति के संदर्भ में भारत-अफ्रीका संबंधों की रणनीतिक प्रासंगिकता पर चर्चा करें।
- भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन ने भारत की ऊर्जा और समुद्री सुरक्षा में कैसे योगदान दिया है?
भारत-अफ्रीका संबंधों की चुनौतियाँ
- चीन से प्रतिस्पर्धा – अफ्रीका में चीन की आक्रामक निवेश नीतियाँ भारत के प्रयासों को पीछे धकेल देती हैं।
- व्यापार असंतुलन – अफ्रीका से कच्चा माल आयात, लेकिन तैयार माल का निर्यात।
- राजनीतिक अस्थिरता – अफ्रीका के कई देशों में तख्तापलट और संघर्ष।
- लॉजिस्टिक्स और अवसंरचना – समुद्री और हवाई संपर्क की कमी।
भविष्य की संभावनाएँ
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग को और मजबूत करना।
- डिजिटल और हरित साझेदारी को बढ़ाना।
- हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देना।
- बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में साझा भूमिका निभाना।
निष्कर्ष : साझा भविष्य का निर्माण
भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन दो क्षेत्रों की साझा आकांक्षाओं का प्रतीक है। ऐतिहासिक सहयोग और भविष्य की दृष्टि के साथ, यह साझेदारी 21वीं सदी के वैश्विक परिदृश्य में निर्णायक साबित होगी।
भारत के लिए अफ्रीका केवल एक बाज़ार नहीं, बल्कि कूटनीति, विकास और वैश्विक शासन में एक रणनीतिक साझेदार है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
यह एक उच्च-स्तरीय कूटनीतिक मंच है, जो भारत और अफ्रीकी देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को मजबूत करता है।
यह 2008 में नई दिल्ली में आयोजित हुआ था।
यह अंतरराष्ट्रीय संबंध (GS-II) का एक अहम विषय है और भारत की विदेश नीति को समझने के लिए जरूरी है।
राजनीतिक संबंध मजबूत करना, व्यापार बढ़ाना, प्रौद्योगिकी साझा करना, सुरक्षा सहयोग और सतत विकास को बढ़ावा देना।
इससे द्विपक्षीय व्यापार और निवेश में भारी वृद्धि हुई है, जिससे भारत अफ्रीका का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार बना है।
भविष्य में सहयोग डिजिटल कनेक्टिविटी, नवीकरणीय ऊर्जा, समुद्री सुरक्षा और वैश्विक शासन सुधारों पर केंद्रित रहेगा।
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
