राम चरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन ‘यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर (एमओडब्ल्यूसीएपी)’ में शामिल
हाल ही में, राम चरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन को ‘यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर (एमओडब्ल्यूसीएपी)‘ में शामिल किया गया है।
IGNCA में एमओडब्ल्यूसीएपी की 10वीं बैठक के मुख्य बिंदु
- इस समावेशन से देश की समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत की पुष्टि होती है।
- यह वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में हो रहे प्रयासों में एक महत्त्वपूर्ण कदम आगे बढ़ने का प्रतीक है।
- यह समावेशन मानवता को आकार देने वाली विविध कथाओं और कलात्मक अभिव्यक्तियों को पहचानने और सुरक्षित रखने के महत्व पर प्रकाश डालता है।
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) ने मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड कमेटी फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (एमओडब्ल्यूसीएपी) की 10वीं बैठक के दौरान एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इसमें सदस्य देशों के 38 प्रतिनिधि, 40 पर्यवेक्षकों और नामांकित व्यक्तियों के साथ एकत्र हुए। तीन भारतीय नामांकनों की वकालत करते हुए, IGNCA ने ‘यूनेस्को की मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर’ में उनका स्थान सुनिश्चित किया।
- IGNCA में कला निधि प्रभाग के डीन (प्रशासन) और विभाग प्रमुख प्रोफेसर रमेश चंद्र गौड़ ने भारत से इन तीन प्रविष्टियों- राम चरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयालोक-लोकन को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया।
- पहली बार आईजीएनसीए ने वर्ष 2008 में अपनी स्थापना के बाद से क्षेत्रीय रजिस्टर में नामांकन जमा किया है।
रामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदयालोक-लोकन कालजयी रचनाएं:
रामचरितमानस
- लेखक: गोस्वामी तुलसीदास
- लिखित: लगभग 16वीं शताब्दी (1574-1576) में अवधी भाषा में
- यह महाकाव्य भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित है और उनके चरित्र को महिमामंडित करता है।
- इसके सात खंड हैं – बाल, अयोध्या, अरण्य, किष्किन्धा, सुंदर, लंका और उत्तरकांड।
- यह हिंदू धर्म शास्त्रों की भावनाओं को सरल शब्दों में व्यक्त करता है।
पंचतंत्र
- लेखक: विष्णुशर्मा
- लिखित: लगभग तीसरी शताब्दी ईस्वी में संस्कृत में
- विषय: यह नीतिशास्त्र पर आधारित किस्से/कहानियों का एक संग्रह है।
- इसमें 5 खंड हैं – मित्रभेद, मित्रलाभ, काकोलूकीय, लब्धप्रणाशिक और अपरीक्षितकारक।
सहृदयालोक-लोकन
- लेखक: पं. आचार्य आनंदवर्धन
- लिखित: 16वीं शताब्दी में ब्रजभाषा में
- विषय: यह श्रृंगार और नायिका भेदों पर एक आलोचनात्मक ग्रंथ है।
- इसमें नायिकाओं के 720 भेदों का वर्णन किया गया है।
- यह संस्कृत रीतिकालीन काव्यशास्त्र का प्रतिनिधित्व करता है।
- इसमें भक्ति और प्रेम भावनाओं को भी स्थान मिला है।
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