भारत के लोकपाल के न्यायिक सदस्य का शपथ ग्रहण समारोह
हाल ही में, न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी ने लोकपाल के न्यायिक सदस्य के रूप में शपथ ली। साथ ही पंकज कुमार और अजय तिर्की ने भी लोकपाल सदस्य के रूप में शपथ ली।
मुख्य बिंदु
- भारत के लोकपाल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर ने शपथ दिलाई।
- शपथ समारोह का आयोजन आज नई दिल्ली में स्थित भारतीय लोकपाल कार्यालय में किया गया।
- शपथ ग्रहण समारोह में केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त प्रवीण कुमार वास्तव और सीबीआई तथा प्रवर्तन निदेशालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।
न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी
- ये भारत के लोकपाल के न्यायिक सदस्य के रूप में शामिल होने से पहले भारत के 22वें विधि आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे।
- इससे पहले, वह कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे।
पंकज कुमार
- ये गुजरात कैडर के 1986 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।
- भारत के लोकपाल के सदस्य के रूप में शामिल होने से पहले वह गुजरात के मुख्य सचिव थे।
अजय तिर्की
- ये मध्य प्रदेश कैडर के 1987 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।
- भारत के लोकपाल के सदस्य के रूप में शामिल होने से पहले वह भारत सरकार के भूमि संसाधन विभाग के सचिव थे।
लोकपाल के बारे में
- लोकपाल, लोक अधिकारियों के विरुद्ध शिकायतों को सुनने वाली संस्था है।
- इस प्रकार की संस्था सर्वप्रथम स्वीडन में ‘औम्बुड्समैन’ नाम से शुरू की गई (1809 ई.में)
- भारत में लोकपाल स्वीडन के ‘औम्बुड्समैन’ से प्रेरित संस्था है।
- राजस्थान प्रशासनिक सुधार समिति (अध्यक्ष – हरिशचन्द्र माथुर) ने वर्ष 1963 में भारत में पहली बार लोकपाल जैसी संस्था की स्थापना की बात की।
- एल.एम सिंघवी ने सर्वप्रथम संसद में लोकपाल की माँग की।
- भारत के प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग (1966 – 70) ने नागरिकों की शिकायतों के निवारण हेतु केन्द्र में लोकपाल एवं राज्य में लोकायुक्त की स्थापना की सिफारिश की।
- उड़ीसा राज्य ने सर्वप्रथम (1970 में) लोकायुक्त अधिनियम पारित किया (1983 में लागू)
- महाराष्ट्र ने सर्वप्रथम (1971 में) लोकायुक्त संस्था की स्थापना की।
- संसद में लोकायुक्त एवं लोकपाल विधेयक सर्वप्रथम 1968 ई. में रखा गया लेकिन या 10वीं बार में 31 दिसम्बर, 2013 को पारित हुआ तथा 16 जनवरी, 2014 को प्रभाव में आया।
संरचना
- 1 अध्यक्ष + अधिकतम 8 सदस्य
- 50% सदस्य न्यायिक सेवा के
- 50% सदस्य SC, ST, OBC एवं महिलाओं में से ।
योग्यता
- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या अन्य न्यायाधीश रह चुके हो।
- प्रतिष्ठित व्यक्ति हो।
नियुक्ति – राष्ट्रपति द्वारा
कार्यकाल
- 5 वर्ष या 70 वर्ष आयु
- पुनर्नियुक्त नहीं।
पदमुक्ति
- राष्ट्रपति को त्यागपत्र देकर
- राष्ट्रपति द्वारा हटाए जाने पर
राष्ट्रपति निम्नलिखित स्थितियों में पद से हटा सकता है –
- दिवालिया घोषित होने पर।
- न्यायालय में किसी अपराध के लिए दोषी सिद्ध होने पर
- मानसिक या शारीरिक रूप से असक्षम होने पर
- विकृत मस्तिष्क का होने पर
अधिकार एवं शक्तियाँ
- सिविल न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त।
- लोकपाल द्वारा CBI को सौंपे गए विषयों पर अधीक्षण, पर्यवेक्षण व नियंत्रण का अधिकार तथा इससे संबंधित CBI के अधिकारियों का स्थानांतरण।
- भ्रष्टाचार के माध्यम से अर्जित चल – अचल संपत्ति जब्त एवं कुर्क करने का अधिकार।
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।